मंगलवार, 18 जनवरी 2011

महर्षि अत्रि जीव नाड़ी

महर्षि अत्रि और उनकी सहयोगी माता अनुसुया से सक्रिय जीव नाड़ी भविष्यवाणियाँ

परिचय

अब तक पाठक नाड़ी भविष्यवाणियों के बारे में पता कर रहे हैं. प्राचीन संतों महंतों की ताड़ के पत्ते पर आश्चर्यजनक भविष्यवाणियां जैसे, अगस्त्य, वसिष्ठ, भृगु, शुक्र, काक भुजंडर और कई महाभाग जिनका नाम हम केवल भारतीय प्राचीन साहित्यों में या शास्त्रों में पढ़ा करते है, लिखी हैं.

जीव नाड़ी क्या है?

जीव नाड़ी गतिशील, सक्रिय है नाड़ी भविष्यवाणियां होती है। जिसमें महर्षि एक व्यक्ति की समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया करते है। जैसे वह अपने साधक के सामने मौजूद है। वे मौके पर ही घटनाओं की स्थिति पर राय व्यक्त करते है. इस प्रकार, यह एक बहुत विशेष और सटीक पद्धति है.


नाड़ी भविष्यवाणी की वर्तमान मानक प्रणाली है कि, जातक अपने अंगूठे की निशानी देता है।

फिर उसे अपनी ताड़पत्री मिलने तक इंतज़ार करना पड़ता है।

इस प्रणाली में संभावना है कि एक मामले में उचित ताड़ का पत्ता कुछ मिनटों में या कई घंटे के

व्यस्त खोज के बाद मिलेगा। अगर व्यक्ति भाग्यशाली हो तो ठीक नहीं तो कोशिश खाली जा सकती

हैं। उसे फिर से आने की लिए बाध्य होना पडता है। अन्यथा एक भद्दा मज़ाक समझकर भूलना पड़ता है।

"दिखने में जीव या सक्रिय नाड़ी" अन्य सामान्य नाड़ीयों जैसी ही दिखती है। लेकिन उसने में लिखा

भविष्य तथा कथन की विधि,

ताड़ के पत्ते पर सटीक बात करने तक पहुँचने का मार्ग एकदम अलग है.

महर्षि अत्रि या अत्रेय और उसकी सहयोगी महासती अनुसुया की यह जीवनाड़ी है.पौराणिक कथाओं के

अनुसार इन व्यक्तियों के बारे में पता है कि अत्रि और अनुसुया युगल का प्रसिद्ध गुरुकुल हुआ करता

था। अपनी तपस्या और योग साधना से माता अनुसूयाने अदभूत शक्ती प्राप्त की थी. उनकी परीक्षा लेने

के लिए व्यक्तित्व के निर्माता ब्रह्मा, पालक विष्णु और रक्षक ?विध्वंसक शिव भूखे और थके तीनों

तीर्थयात्रियों के रूप में, मध्याह्न भोजन के लिए गुरुकुल में पहुंचे. एक याचक के रुप में उन्होंने तुरंत भोजन

की मांग की.साथ में एक अजीब शर्त लगाई कि, मेजबान अत्रीजी के आने का इंतज़ार न करते हुए,

अनुसुया द्वारा भोजन परोसा जाए, वो भी बिना कपड़ा पहने.

अनुसूयाजी को अपने योग शक्ती से पता चला कि यह एक बहाना है उसकी परीक्षा लेने का। केवल

उन्होंने शर्त का पालन किया परंतु अपने योगबल से उस तीनों याचकों को शिशुरुप में ढालकर उन्हे

स्तनपान करवाया. महर्षि अत्रि जब अपनी साधनासे लौटे तो देखकर दंग रह गए कि जगत के तीनो

महान देवता माता अनुसूया की गोद में खेल रहें है। बच्चों की शौकीन उनकी पत्नी अनुसुया तथा

असाधारण तीन बच्चों को आशीर्वाद दिया. तीनों को कहा, "आपको आज़ से दत्तात्रेय के अवतार से

जाना जाएगा".

दत्त का अर्थ है - प्रस्तुत किया गया दिया गया, त्रेय का मतलब है तीनों, अत्रेय का अर्थ है अत्रि परिवार के ।

संक्षेप में, सांसारिक की बेहतरी के लिए अत्रि और उसकी सहयोगी अनुसुया को त्रिमूर्ति के अवतार स्वरूप

भेंट मिली। दत्तात्रेय अवतार बाद में नवनाथ के सर्जक का संप्रदाय बना। नौ सिद्धों के, नाथ - आदिनाथ -

स्वयं शिव माने जाते है।

देखने की प्रक्रिया

व्यक्ति के सामने जीव नाड़ी ताड़पत्र के तीन पैकेट रखे जाते हैं। महर्षि अत्रि और माता अनुसुया के

मार्गदर्शन की तलाश उन पट्टियों में से होती है। किसी एक ताड़ के पत्ते से जातक द्वारा पुछे गए

प्रश्नों का, समस्याओं का समाधान तुरंत पट्टी से पढकर बताया जाता है।

जातक को दिन और समय दिया जाता है. शुरु में कहा जाता है, महर्षींयो से प्रार्थना करे कि आप

आशिर्वाद के रुप में हमारा मार्गदर्शन करें। १२ कवडियां दोनो हाथमें लेकर दान दिया जाता है.

उलट पुलट गिरी कवडियों को गिनकर किसी एक पैकेट से ताड़ के पत्र का चनय किया जाता है।

एक और तरीका भी है जो शारीरिक रूप से प्रश्न पुछने के लिए मौजूद नहीं हैं उस व्यक्ति को 1 से 108 तक

की कोई कोई भी संख्या बताना पडता है। उस नंबर के आधार से, नाड़ीरीडर ताड़पत्ते तक पहुंता है

तथा प्रश्न / समस्या से संबंधित ताड़पत्र में लिखा पढना शुरू करता हैं.

महर्षी अत्रि सर्व प्रथम सत-चित- आनंद शिवतत्व को वंदना कर जातक के प्रश्नों के उत्तर देने की प्रेरणा

उनसे मांगते है। उनके कहने से पता चलता है कि हम उस शिवतत्व के सामने कुछ भी नही। परम

तत्व की करुणा हो तो ही कुछ हो सकता है अन्यथा नही। एक अवसर पर एक विशेष शंका के उपलक्ष

में अत्रि महर्षि ने संख्या पद्धति का सुझाव दिया था, जिससे दूर स्थानों से जातकों को अपनी समस्या

का समाधान पाने के लिए नाड़ी केंद्र तक आने की जरूरत नही रही। जातक अपनी भाषा में पश्न पुछने

पर महर्षीं का मार्गदर्शन उसकी भाषा में अनुवाद कर फोनपर बताया जाता है। एक प्रश्न के पश्चात

जातक दुसरा प्रश्न पुछ सकता है। तब उसे फिरसे कौड़ीयां डालकर प्रश्न करना पड़ता है। एक समय पर

आप पांच तक प्रश्न पुछ सकते हैं।

अचरज की बात यह है कि उन्ही तीन ताड़पत्र को पैकिट में से पत्रों को बारंबार पढकर अब तक सेंकड़ो

लोगों ने हज़ारों प्रश्नों के उत्तर बैठे बैठे पाए है। आगे कितने साल तक यह सिलसिला जारी रहेगा

इसकी कल्पना किसी को भी नहीं।


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सोमवार, 3 जनवरी 2011

अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन

अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन

अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन से वेब-कॉम्प्युटर पर किए संभाषण द्वारा १४ दिसेंबर२०१० के उत्तरों का सारांश। १ से ४ तक के प्रश्न सेल्वाजी के थे। उनके कहनेपर मैंने पुछे थे। पांचवा प्रश्न तथा अंत में की गई प्रार्थना मेरी याने शशिकांत ओक की तरफ़ से थी।

पश्न पहला - आपके भविष्य कथन में कोई ज्योतिषशास्त्र के गणित या सुत्रों की चर्चा या उल्लेख नही होता, फिर ये जीव नाडी के कथन किस प्रकार से लिखे गए? (अंक बताया था ४१)

उत्तर – उस दिन का संदर्भ देकर नाडी महर्षी उत्तर देने की शुरवात करते है। अत्री उवाच – आज विकृती वरुषम (सन २०१०-२०११)के कार्तिक मासम (१५ नोहेंबर से १५ दिसंबर तक) की तमिल तिथि २८ (तारीख १४ दिसंबर २०१०)अर्थात नवमी, मंगलवार है । अब के समय उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के दिन चंद्र मीन राशी में है। तथा प्रश्न का लग्न सिंह राशि का होगा। बाद में तमिल पंचाग से इस ग्रहकालगति की सत्यता १०० प्रतिशत सही पाई गई। जो इस प्रकार थी। मेष लग्न में छटे स्थान में शनि, सातवे में रवि-बुध, आठवे में शुक्र, मंगल तथा राहू नवम घर में, गुरू-चंद्र दसवे में, तथा केतु तिसरे घर में उपस्थित होंगे।

आगे महर्षी कहते है, यह मात्र कहनेवाली बात है कि हम महर्षी लोग जीवनाडी कथन कराते है परंतु सत्यता यह है कि स्वयं भगवान शिवशंकरही इसे लिखते तथा बोलने की प्रेरणा है। जिन्हे आदि-अंत का ज्ञान हो अर्थात त्रिकालज्ञान हो वे ही ऐसे कथन करने की क्षमता रखते है।

कथन सुत्र में होते है। बिना सुत्र का इस ब्रह्मांड में कुछ भी नही। सब गणित पंचमहाभूत, २७ नक्षत्र, ९ ग्रहगोल तथा १२ राशियों से एक दूसरों से जुडे है। समय की गणना अनादि है। समय तो एक ही है। मानवी जीवन को आधार देने के लिए समय को टुकडों में बांट कर साल, मास, दिन, आदि की रचना हुई। आगे सुक्ष्मातिसुक्ष्म भी भाग - जैसे एक ही लग्न के ३०० भाग बने। उसके फिर १५० उपविभाग या अंश कर नाडी के अंश बनाए गए। तात्पर्य – रचनाएं सुत्रबद्ध है। इस के आगे की बात गुप्त रखना ही हित में है।

प्रश्न दुसरा – हे श्रद्धेय महर्षी अत्री, आप के आदेश के अनुसार मैंने जप साधना शुरू की तथा माता सरस्वती की तथा दत्तात्रय के जन्मदिन पर साधना गुरु के दरबार में जा कर की । क्या सब आपके निर्देश के अनुसार था या कोई त्रुटियां रही? अगर गलतियाँ रही हों तो उसे ठिक करने के लिए क्या करना प़डेगा? (अंक था - १९)

उत्तर – प्रश्न का लग्न है तुला। कोई त्रुटी नही रही। ना आपने जो महर्षींयों की सेवा की उसमें कोई कमी नही आय़ी है। मानव हो तो गलतियां होती है, गलतियों को सुधारने के लिए दंड भी करता रहता हूँ।

प्रश्न तिसरा- नाडी वाचक दुसरों को जीवनाडी का पठन करने की दीक्षा दे सकते है? यदि हो तो क्या तरीका है? (अंक बताया था ६३)

उत्तर – मिथुन लग्न मे पुछा गया प्रश्न है। जीव नाडी कथन पढाने का कोई तरीका नही । भगवान शिवही तय करते है कि उसे कौन पठन करेगा । उसे वो कला आपने आप आएगी । इस के लिए गुरु की, प्रॅक्टीस या पैरची(नाडीपट्टी में आया तमिल शब्द) की जरूरत नाहीं। इसे वय का, लिंग का तथा संन्यासी होने का बंधन नही । फिर भी यह कहूं कि ब्रह्मर्षी का आशीर्वाद हो तथा जिसकी कुंडली में अध्यात्म योग हो तो उसे पठने में कठिनाई नही होती। यह शक्ति कभी भी मिल सकती है। संक्षिप्त में, जैसे भगवान शिवशंकर की इच्छा हो तो वे व्यक्ति का चयन करते है।

प्रश्न – चौथा। पैसे की कमी के कारण जीव नाडी में बताए गए परिहार का पालन करना संभव नही होता ऐसे में क्या करे? (अंक ८३ बताया था)

उत्तर – धनुलग्न मे पुछे गये प्रश्न का उत्तर देने से पहले नाडी शास्त्री सेल्वा मुत्थु कुमारन कहते है कि अत्रि महर्षी गरम हो कर कहते है। जिसके लिए परिहार के विधी बताए जाते है उसकी परिस्थिती के हिसाब से ही उसे मार्गदर्शन किया जाता है। इस तरह का प्रश्न गलत है। पढने वाला या अन्य भाषा में कथन कर समझाने वाला अगर गलती करे तो क्या करे? यदि जादा पैसे का लालच हो जाए तो उसे ठीक प्रायश्चित्त या दंड मिलता है। उसकी चिंता जातक को नही करनी चाहिए।

प्रश्न पांचवा – प्रश्न पूछनेपर आप प्रश्न का लग्न बताते है, उसका कारण तथा गणित क्या है? (अंक बताया था ७१)

उत्तर – प्रश्न कुंभ लग्न में पुछा गया था। प्रश्न गलत नही, अतः जानकारी देकर संतुष्ट करता हूँ। प्रश्न पुछनेपर ही आप अंक बताते हो। पर असल में आप क्या अंक कहने वाले हो यह भी तय है। इसलिए आपके उत्तर देने की एक कुंडली बनती हे जिस में प्रश्न का लग्न तयार होता है। सीधे साधे शब्दों में कहा जाए तो जो अंक आप १ से १०८ तक बताते हो वह १२ राशियों तथा ९ ग्रहों के गुणाकार से बनता है। जैसे अभी आपने ७१ कहा तो १२गुना ५ बने ६० शेष बचे ११ तो प्रश्न की लग्न होता है कुंभ। अबतक की संख्या का अध्ययन आप करे तो यह बात उभरकर आएगी। जैसे पहले प्रश्न की ४१ संख्या का लग्न था सिंह।( १२*=शेष ५, सिंह राशी का क्रमांक होता है -५), दुसरे प्रश्न की संख्या १९का शेष ७ था, तो बनी तुला राशी, तिसरे का शेष ३ प्रश्न याने प्रश्नलग्न था मिथुन, चौथे प्रश्न की शेष संख्या ९ थी तो लग्न बना धनुष)।

महर्षी अत्री से विदा लेने से पुर्व, मुझमें काव्यशक्ति जागृत हो ऐसे आशीर्वाद मांगा तब उन्होंने कहा, प्रार्थना आत्मा से संबंधित है। उसे उचित गुरुही प्रदान करेंगे

शब्दांकन - शशिकांत ओक

दि ३ जनवरी २०११.